एक प्रतिष्ठित अखबार के संस्थापक के बारे में कहा जाता है कि जब वे एक अखबार में काम करते थे तो उन दिनों उन्होंने एक लेख लिखा था। उन्होंने वह लेख अखबार में प्रकाशित होने के लिए दिया। चूँकि वह लेख व्यवस्था के खिलाफ था, इसलिए उनके लेख को कोई तवज्जो नही दी गई। इससे वे काफी निराश हुए और उन्होंने अपने कुछ साथियो के साथ मिलकर और ५०० रुपये उधार लेकर एक ख़ुद का अखबार शुरू किया। उस अखबार ने मूल्यों के साथ कभी कोई समझौता नही किया। वह अखबार हमेशा समाज का दर्पण बना रहा और उसने समाज को एक नई दिशा भी दी। कुछ ही सालोंमें वह अखबार प्रदेश का नम्बर एक अखबार बन गया। उस अखबार कि विश्वसनीयता इतनी थी कि लोग कहने लगे थे कि इसमे छापा है तो सच ही होगा। उस अखबार ने कभी भी विज्ञापन के लिए मूल्यों और सामग्री से समझौता नही किया।
यह उस ज़माने कि बात थी। लेकिन अब परिस्थितियां और मूल्य विल्कुल बदल गए हैं। आज यह अखबार तीसरी पीढी के हाथो में है। अब यह समाज का आईना नही बल्कि व्यापार का साधन मात्र बनकर रह गया है। आज इस अखबार में न केवल मूल्यों के साथ समझौता किया जाता है, बल्कि कर्मचारियों के शोषण में भी यह अखबार पीछे नही है। विज्ञापन के लिए समाचार से समझौता, कॉस्ट कटिंग के नाम पर पत्रकार्मियो के अधिकारों का हनन, यहाँ तक कि पत्रकर्मियों के स्वाभिमान से खिलवाड़ भी इस अखबार कि विशेषता बन गई है। इस अखबार के भोपाल संस्करण के संपादक को न तो कर्मचारियों से बात करने कि तमीज है, न ही उसने प्रेम कि भाषा सीखी है। यही वजह है कि यहाँ के पत्रकर्मी अपने आत्मा सम्मान को दांव पर लगाकर संसथान में काम कर रहे हैं। न उसे प्रतिभा कि क़द्र है और न ही उम्र का लिहाज। जो लोग अपने सम्मान से समझौता नहीं कर सकते वे स्वतः संसथान छोड़कर जा रहे हैं।
यह सब देखकर अवश्य ही अखबार के संस्थापक महोदय कि आत्मा रोती होगी, कि उन्होंने सपना क्या देखा था और हो क्या गया?
बुधवार, 9 सितंबर 2009
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vakt vakt kee baat hai. narayan narayan
जवाब देंहटाएंसही कहा ।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंयह अभियान सचमच में जरूरत का अभियान है. बेहतर चीज़ें निकल कर आयेंगीं. शुभकामनाएं. . जारी रहें.
जवाब देंहटाएं---
क्या आप [उल्टा तीर] के लेखक/लेखिका बनाना चाहेंगे/चाहेंगी- विजिट- http://ultateer.blogspot.com/ होने वाली एक क्रान्ति.
thik hai.
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